करवा चौथ के व्रत कैसे करते है उसके उपासना विधि क्या है
करवा चौथ के त्यौहार हिन्दू धर्म के लिए बहुत महत्व रखता है ।सुहागिन महिलाएं व्रत करती है। अपने पतियों के लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती है।यह व्रत रात को चन्द्रमा का व्रत 20 अक्टूबर को रखा जाएगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार करवा चौथ कार्तिक माह के पूर्णिमा के बाद चौथे दिन मनाया जाएगा इस साल करवा चौथ का व्रत रविवार को होगा करवा चौथ के व्रत रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
करवाचौथ की पूजा सामग्री
टोटीवाला करवा, मिटटी या तांबे का ढक्कन वाला करवा,कलश, कुमकुम, अक्षत, नारियल, अगरबती, मिठाई, दीपक रूई, माला, गंगाजल, चलनी, हलुआ, आदि।
करवाचौथ श्रृंगार की सामग्री
मेहंदी, महावर, कंगन, बिंदी, चूड़ी, बिछुआ,काजल आदि।
करवाचौथ की कथा
ऐसा मान्यता है कि करवा चौथ की पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है।जब पूजा के साथ इस कथा का पाठ किया जाता है।जो स्त्रिया करवा चौथ के दिन पूजन के साथ इस कथा का पाठ करती हैं। और चन्द्रमा का अध्य देती है। करवा माता उनके पति को दीर्घायु देती हैं। और साहूकार की बेटीक तरह उनके पति पर भी सदैव भगवान गणेश की कृपा रहती है।
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकर के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। बहन ने अपनी भाभी से भी कहा कि चंद्रमा निकल आया है व्रत खोल लें, लेकिन भाभियों ने उसकी बात नहीं मानी और व्रत नहीं खोला। बहन को अपने भाईयों की चतुराई समझ में नहीं आई और उसे देख कर करवा उसे अर्घ्य देकर खाने का निवाला खा लिया। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है। उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। उसने पूरे साल की चतुर्थी को व्रत किया और अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप करवा माता और गणेश जी के आशीर्वाद से उसका पति पुनः जीवित हो गया।
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