Christmas day 2025: क्रिसमस-डे परंपरा का इतिहास 16वीं शताब्दी से जुड़ा है। यह परंपरा जर्मनी में शुरू हुई, जहां लोग सर्दियों में अपने घरों में सदाबहार पेड़ लाकर सजाते थे।
क्रिसमस-डे हर साल 25 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है।
क्रिसमस हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है। ईसाई धर्म का सबसे पवित्र और प्रिय त्योहार है। इसे प्रभु यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि शांति, प्रेम और एकता का प्रतीक भी है। नन क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा इसे और भी खास बनाती है।
क्रिसमस ईसाई धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है, जिसे दुनियाभर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. क्रिसमस के पहले से ही चारों तरफ इसकी रौनक देखी जाती है. इस दिन को ‘बड़ा दिन’ भी कहा जाता है. क्रिसमस का त्योहार प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
क्रिसमस-डे का महत्व
यीशु मसीह का जन्म मानवता को पापों से मुक्ति दिलाने, प्रेम, दया और सहनशीलता का संदेश देने के लिए हुआ था। माना जाता है कि उनका जन्म एक गुफा में हुआ था, जहां गड़रियों ने उनके जन्म की सूचना सभी को दी थी। ईसाई मान्यताओं के अनुसार, यीशु मसीह ईश्वर के पुत्र हैं और उनका जीवन मानवता के कल्याण के लिए समर्पित था। क्रिसमस का उद्देश्य उनकी शिक्षाओं को याद करना ।
क्रिसमस-डे के पीछे की रहस्य
ईसाई धर्म की मान्यता के अनुसार प्रभु यीशु मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। माना जाता है कि मरियम को एक सपना आया था, जिसमें उनके प्रभु के पुत्र यीशु को जन्म देने की भविष्यवाणी की गई थी। एक बार शादी के बाद मरियम और यूसुफ को बेथलहम जाना पड़ा। लेकिन उन्हें वहां कहीं रहने के लिए जगह नहीं मिली। देर रात होने की वजह से मरियम को बेथलहम में ही रुकना पड़ा। लेकिन वहां रुकने के लिए कोई ठीक जगह नहीं मिलने के कारण उन्होंने एक गौशाला में रुकने का फैसला किया। जहां मरियम ने प्रभु यीशु को जन्म दिया।
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