भगवान विष्णु की पूजा के लिए बहुत शुभ दिन माना जाता है। हर महीने की तरह जनवरी में भी दो विशेष एकादशी तिथियां पड़ेंगा ।
जनवरी का महीना हिंदू पंचांग में आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस महीने कई व्रत और त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना अलग महत्व होता है। इन्हीं में से एक तिथि है एकादशी। सनातन धर्म में किसी भी एकादशी तिथि का विशेष महत्व है व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का उत्तम साधन माना जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कब है तारीख जाने
साल 2025 की पहली एकादशी पौष महीने में पड़ेगी जिसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल यह व्रत पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन यानी 10 जनवरी, शुक्रवार को रखा जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त 2025
पौष माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का आरंभ- 9 जनवरी 2025, दोपहर 12.22 मिनट से
पौष माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का समापन- 10 जनवरी 2025, प्रातः 10.19 मिनट पर
पौष पुत्रदा एकादशी पूजा शुभ मुहूर्त - 10 जनवरी प्रातः 8.34 से प्रातः 11.10 तक
पौष एकादशी का महत्व जाने
व्रत को रखने से संतान की सेहत भी अच्छी बनी रहती है। यही नहीं इस दिन का व्रत करने से संतान के जीवन में सुख-समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। इस दिन व्रत करने वाले को पूरे दिन उपवास रखना चाहिए और भगवान विष्णु की कथा सुननी चाहिए। इसके साथ ही, दान-पुण्य और गरीबों को भोजन कराने का भी विशेष महत्व है। जो व्यक्ति इस दिन दान-पुण्य करता है उसे कई कष्टों से मुक्ति मिलती है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके कोई संतान नहीं थी. उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा. बिना पुत्र के पितरों और देवताओं से उऋण नहीं हो सकते. इस तरह राजा रात-दिन इसी चिंता में घुला करता था.
इस चिंता के कारण एक दिन वह इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा उत्पन्न हो गई, किंतु वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है, अतः उसने इस विचार को मन से निकाल दिया. एक दिन वह घोड़े पर सवार होकर वन को चल दिया. पानी की तलाश में राजा आगे बढ़े.
दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिला. सरोवर के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम करके उनके सामने बैठ गया.ऋषिवर बोले - 'हे राजन! हम तुमसे अति प्रसन्न हैं. तुम्हारी जो इच्छा है, हमसे कहो।' राजा ने प्रश्न किया - 'हे विप्रो! आप कौन हैं? और किसलिए यहां रह रहे हैं?'
ऋषि बोले - 'राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है. आज से पांच दिन बाद माघ स्नान है और हम सब इस सरोवर में स्नान करने आए हैं.' ऋषियों की बात सुन राजा ने कहा - 'हे मुनियो! मेरा भी कोई पुत्र नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे एक पुत्र का वरदान वीजिए।
ऋषि बोले - 'हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इसका उपवास करें. भगवान श्रीहरि की अनुकम्पा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा.' राजा ने मुनि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपनी नगरी आ गया ।
भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह के पश्चात उसके एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ. यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना." हे श्रीहरि जिस तरह एक निसंतान दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति हुई इसी तरह संसार में हर प्राणी को माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो।
एकादशी व्रत
एकादशी व्रत सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक किया जाता है. ये निराहार या जलाहार भी रखा जाता है. इस व्रत में रात्रि जागरण किया जाता है. इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं।
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