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    Friday, 3 January 2025

    Savitribai Phule Jayanti सावित्रीबाई फुले जयंती पर दें यह छोटा और आसान भाषण

      

    सावित्रीबाई फुले ने 19वीं सदी में महिला शिक्षा, लिंग समानता और सामाजिक सुधार के लिए अद्वितीय योगदान दिया। उन्होंने पहले लड़कियों के स्कूल की स्थापना की, और अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की वकालत की। उनका समर्पण और साहस हमें प्रेरणा देता है। महाराष्ट्र सरकार ने उनके सम्मान में 'सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय' बनाया है।



    सावित्रीबाई फुले का भाषण 

    देश में 3 जनवरी का दिन भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। सावित्रीबाई फुले न सिर्फ पहली महिला शिक्षिका थी, बल्कि महान समाजसेविका और नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता भी थीं। उनका पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता। उनका नाम आते ही सबसे पहले शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में उनका योगदान हमारे सामने आता है। वे हमेशा महिलाओं और वंचितों की शिक्षा के लिए जोरदार तरीके से आवाज उठाती रहीं। वे अपने समय से बहुत आगे थीं और उन गलत प्रथाओं के विरोध में हमेशा मुखर रहीं। शिक्षा से समाज के सशक्तिकरण पर उनका गहरा विश्वास था। सावित्रीबाई फुले एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक,कवयित्री और शिक्षाविद् भी थीं। उनके पति ज्योतिराव फुले भी एक प्रसिद्ध चिंतक और लेखक थे। जब महाराष्ट्र में अकाल पड़ा तो सावित्रीबाई और महात्मा फुले ने जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे। सामाजिक न्याय का ऐसा उदाहरण विरले ही देखने को मिलता है। जब वहां प्लेग का भय व्याप्त था तो उन्होंने खुद को लोगों की सेवा में झोंक दिया। इस दौरान वे खुद इस बीमारी की चपेट में आ गईं। मानवता को समर्पित उनका जीवन आज भी हम सभी को प्रेरित कर रहा है। 

    यहां उपस्थित प्रधानाचार्य महोदय, आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों या फिर यहां उपस्थित आदरणीय अतिथिगण एवं मेरे प्यारे साथियों।


    सावित्रीबाई फुले का जन्म 

    आज 3 जनवरी का दिन देश की महिलाओं के विकास की यात्रा में बेहद महत्वपूर्ण दिन है। आज 3 जनवरी को भारत में महिला शिक्षा की अगुआ सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। आज ही के दिन 1831 में देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा के नायगांव में एक किसान परिवार में हुआ था। सावित्रीबाई फुले ने भारतीय महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई। आज का दिन देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देने और नमन करने का दिन है।

    आजादी से पहले, खासतौर पर 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति समाज में बेहद खराब थी। उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाता था। पति की मौत के बाद उन्हें सती होना पड़ता था। महिलाओं के साथ काफी भेदभाव होता था। समाज में विधवाओं का जीवन जीना बेहद मुश्किल था। दलित और निम्न वर्ग का शोषण होता था। उनके साथ छुआछूत का व्यवहार होता था। ऐसे माहौल में एक दलित परिवार में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने न सिर्फ समाज से लड़कर खुद शिक्षा हासिल की बल्कि अन्य लड़कियों को भी पढ़ाकर शिक्षित बनाया।

    जब सावित्री बाई स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कड़ा संघर्ष करते हुए शिक्षा हासिल की। जब वह महज 9 वर्ष की थीं जब उनका विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था। ज्योतिराव फुले भी शादी के दौरान कक्षा तीन के छात्र थे, लेकिन तमाम सामाजिक बुराइयों की परवाह किए बिना सावित्रीबाई की पढ़ाई में पूरी मदद की। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं। पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में लड़कियों का स्कूल खोला। इसे देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फुले दंपति ने देश में कुल 18 स्कूल खोले। विधवाओं के दुखों को कम करने के लिए उन्होंने नाइयों के खिलाफ एक हड़ताल का नेतृत्व किया, ताकि वे विधवाओं का मुंडन न कर सकें, जो उस समय की एक प्रथा थी।

    ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। वह देश की पहली महिला शिक्षक ही नहीं पहली महिला प्रिंसिपल भी थीं।

    सावित्रीबाई ने अपने घर का कुआं दलितों के लिए भी खोल दिया। दलित विरोध माहौल में उस दौर में ऐसा करना बहुत बड़ी बात थी। सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए भी एक आश्रम खोला। यहां बेसहारा औरतों को पनाह दी।

    साथियों, आज महिला शिक्षा, सशक्तिकरण व कल्याण के प्रति संकल्प लेने का दिन है। महिलाओं के विकास से ही समाज और देश का विकास होगा। कोई देश आधी आबादी को पीछे छोड़कर कभी आगे नहीं बढ़ सकता। देश के कई गांव कस्बों में आज भी महिलाओं की स्थिति बेहद खराब है। अगर हमें सावित्रीबाई फुले के सपनों को साकार करना है तो महिला सशक्तिकरण की ओर हमेशा प्रयासरत रहना होगा।


    सावित्रीबाई फुले का निधन 

    पुणे में जब प्लेग फैला तो सावित्रीबाई खुद मरीजों की सेवा में जुट गईं। वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं और इससे उनका निधन हो गया।


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